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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

'पद्मावत' प्रबन्ध काव्य की दृष्टि से सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी एक सफल और अत्यन्त लोकप्रिय काव्यग्रन्थ है। ग्रन्थ के आरम्भ में मंगलाचरण के उपरान्त मुहम्मद साहब का वर्णन कर कवि वक्त का उल्लेख करता है। तदुपरान्त गुरु परम्परा क्रम में अपने संदर्भ में कुछ विशेष सूचना दे देने के अनन्तर ग्रन्थ के रचनाकाल, उसकी कथावस्तु, भाषा और छन्द का वर्णन करता है। पद्मावती और रत्नसेन की प्रेम कथा ही 'पद्मावत' का प्राण है। 'पद्मावत' की कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है।

सिंहलद्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री पद्मावती का जन्म चम्पावती के कुक्ष से हुआ। बारह वर्ष में ही सकल विद्यानिष्णात यह पद्मावती सुन्दरी में परिणत हो गयी। अब पिता को कन्या के विवाह की चिन्ता सताने लगती है। राजमहल में ही हीरामन नाम का एक शुक था। एक दिन पद्मावती उसके पास आकर अपनी काम व्यथा का वर्णन करती है। हीरामन कहता है कि 'विधाता का लेख अमिट होता है, यदि कहो तो देश-देशान्तर निकलूँ और तुम्हारे योग्य वर का अनुसंधान करूँ। यह संवाद किसी दुर्जन के माध्यम से राजा के कानों में जा पहुंचा और राजाज्ञा हुई कि सुए को मार डाला जाये। पद्मावती के अनुनय विनय कर सुए को बचा तो लिया किन्तु उसका मन खटक गया और एक दिन जब पद्मावती अपनी सखियों के साथ मानसरोवर में स्नान करने गयी हुई थी, अवसर पाकर हीरामन ढाक- वन को उड़ चला। वन में वह अन्य पक्षियों के साथ एक दिन बहेलिये के जाल में फंस गया। सिंहलद्वीप से चित्तौड़गढ़ की ओर व्यापारियों का एक बनजारा आ रहा था। संयोग से बहेलिए ने हीरामन को एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया। ज्ञानी सुए की विद्वता सुन चित्तौड़ नरेश रत्नसेन ने एक लाख स्वर्ण मुद्रा देकर उस ब्राह्मण से खरीद लिया। हीरामन राजा रत्नसेन के राजमहल में लाया गया। राजा उसे बहुत चाहने लगा। यहाँ रानी नागमती को अप्रिय लगने लगा।

कुछ दिनों के बाद जब राजा रत्नसेन आखेट को गया हुआ था, चित्तौड़गढ़ की पट्ट - महिषी रानी नागमती शृंगार कर हँसती हुई सुए के पास आई और बोली "इस संसार में मेरी जैसी रूपवती कोई दूसरी भी है? हे सुए ! सच बता, तुझे राजा की शपथ है।' सुए ने हंसकर उत्तर दिया "जिस सरोवर के तट पर हंस न आते हों, वहाँ बगुला ही हंस कहलाता है। सुए के मुख से सिंहलद्वीप की पद्मिनी नारियों का सौन्दर्य वर्णन सुन मर्माहत हो रानी नागमती ने अपनी विश्वसनीय धाम को उसे एकान्त में ले जाकर मार डालने को कहा, किन्तु धाम ने यह सोचकर कि यह राजा का अत्यन्त प्रिय है, उसे मारने के बजाय किसी गोपनीय स्थान में सुरक्षित छुपाकर रख दिया। आखेट से आते ही राजा ने सुए को याद किया, किन्तु रानी ने यह कहकर सन्तुष्ट करना चाहा कि उस दुष्ट सुए को तो बिल्ली उठा ले गयी। यह सुन राजा क्रुद्ध हो उठा। किंकर्तव्यविमूढ़ रानी ने सारा दोष धाम के ऊपर मढ़ दिया। तब धाम ने राजा को हीरामन सौंपकर चैन की सांस ली। राजा ने सुए के सारा वृत्तान्त पूछा। इसी प्रसंग में सुए ने सिंहलद्वीप, उसका ऐश्वर्य, वहाँ के सुखभोग तथा राजुकमारी पद्मावती के अप्रतिम रूप सौन्दर्य का मर्मस्पर्शी वर्णन किया। पद्मावती के सौन्दर्य का नख - शिख वर्णन सुनकर राजा मूर्च्छित हो गया। होश में आपने पर अर्द्ध- विक्षिप्तावस्था में वह पद्मावती के नाम की रट लगाने लगा। अन्त में हीरामन को अपना गुरु मानकर उसने राज-पाट छोड़ दिया। विरह की अनुभूति के कारण उसने पद्मावती रूपी सिद्धि की प्राप्ति के लिए योग की साधना में कायिक विकारों को दूर करने के निमित्त योगी रूप धारण कर लिया। योगी के वेश में ज्योतिषियों द्वारा बतायी गयी शुभ बेला में वह सोलह सहस्त्र राजकुमारों के साथ सिंहल द्वीप की ओर चल पड़ा।

सिंहलद्वीप की ओर प्रस्थान करते हुए रत्नसेन को शुभ शकुन हुए। योगियों का यह समुदाय हीरामन के नेतृत्व में मध्य प्रदेश पार करते हुए कलिंग देश जा पहुंचा। क्षार, क्षीर, दधि, उदधि, सुरा, किलकिला और मानसर इन सप्त-समुद्रों के व्यवधानों को पारकर अन्त में सत्यनिष्ठ रत्नसेन सिंहलद्वीप के निकट आ पहुँचा। सभी योगी महादेव के मंदिर में योग साधना करने लगे। बसन्त पंचमी के दिन राजकुमारी पद्मावती अपनी सखियों के साथ शिव मंदिर को गयी। वहाँ योग साधना में लीन रत्नसेन को उसने पहली बार देखा। वह वैसा ही था जैसा उसे सुए ने बताया था। योगी रत्नसेन पद्मावती को देखते ही मूर्च्छित हो गया। निराश पद्मावती उसके हृदय पर चंदन से यह लिखकर वापस लौट गयी कि - 'मनोनुकूल भिक्षा प्राप्ति के योग तो तूने अभी भी नहीं सीखा। मूर्च्छा भंग होते ही रत्नसेन पश्चाताप करने लगा। उसी क्षण कोढ़ी का वेश धारण कर बैल पर सवार हो भगवान शंकर पार्वती के साथ योगी के समक्ष प्रकट हुए। भगवान शिव के द्वारा प्राप्त सिद्धि-गुटिका' के सहारे योगी रत्नसेन ने सिंहलद्वीप का राजगढ़ घेर लिया। गंधर्वसेन ने क्रुद्ध होकर योगी को बन्दी बना लिया और वह शूली स्थल पर लाया गया। पद्मावती का नाम जप करते हुए योगी ने वहीं आसन लगा लिया। भाट रूप में शिव ने राजा गंधर्वसेन को अनेक प्रकार से समझाया और कहा 'योगी वस्तुतः चित्तौड़गढ़ का राजा रत्नसेन है और पद्मावती के योग्य उपयुक्त वर है। गंधर्वसेन क्षमा-याचना करता हुआ भगवान शिव के पैरों पर जा गिरा। हीरामन ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया और तब राजा ने बत्तीसों लक्षणों से युक्त राजा रत्नसेन को पद्मावती के सर्वथा उपयुक्त वर के रूप में प्राप्त कर टीका कर दिया। पूरे विधि-विधान के साथ रत्नसेन और पद्मावती का विवाह संस्कार सम्पन्न हुआ। रत्नसेन के साथ आये हुए सोलह सहस्त्र राजकुमारों को भी एक-एक पद्मिनी पत्नी के रूप में उपलब्ध हुई। सभी ने सिंहलद्वीप में रहकर जीवन का सुख भोग प्राप्त किया।

विरहिणी रानी नागमती रत्नसेन का मार्ग देखती रही और इस प्रकार प्रतीक्षा में पूरा एक वर्ष व्यतीत हो गया। उसकी आंखों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित होती रही, किन्तु उसका प्रिय नहीं लौटा। 'मानुष घर घर' पूँछकर जब वह थक गई तो पक्षियों से प्रवासी प्रिय का अभिघात पूँछने निकली। संयोगवश उसकी विरह पीड़ा में मर्माहत हो आधी रात में एक पक्षी उसके दुःख का कारण पूँछ ही बैठा। विरहिणी के विरह सन्देश को लिए हुए वह पक्षी सीधे सिंहलद्वीप आया और उसी वृक्ष के ऊपर जा बैठा जिसके नीचे रत्नसेन आखेट करता हुआ संयोग से आने वाला था। वृक्ष पर बैठे हुए अन्य पक्षियों को अपना परिचय देते हुए वह बोला - "मैं जम्बूद्वीप के चित्तौड़ नगर से आ रहा हूँ। वहाँ का राजा रत्नसेन सिंहलद्वीप के लिए निकल गया किन्तु उसकी विरहिणी विरहाग्नि से इतनी ग्रस्त है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता, बस उसी में दग्ध हो जाने के कारण मैं इतना अधिक काला हो गया हूँ।' पक्षी के मुख से यह सुनकर राजा रत्नसेन का मन सिंहलद्वीप से विमुख हो गया और वह चित्तौड़गढ़ की ओर चल पड़ा। इधर नागमती को शुभ शकुन हुए। इस प्रकार चित्तौड़ में रहते हुए राजा रत्नसेन को नागमती से नागसेन और पद्मावती से पद्मसेन नाम के दो पुत्र रत्न भी प्राप्त हुए।

चित्तौड़ में राघव चेतन नाम का एक ब्राह्मण पंडित था जिसे यक्षिणी सिद्धि थी। वेद - विरुद्ध आचरण के आरोप में रत्नसेन ने दण्डस्वरूप उसे देश निकाला दे दिया। कुपित एवं अपमानित राघव चेतन प्रतिशोध की भावना से भरा हुआ दिल्ली जा पहुँचा। पद्मावती से प्राप्त स्वर्ण कंकण को साक्षी देकर उसने उसके रूप सौन्दर्य का वर्णन किया, जिसे सुन अलाउद्दीन मूर्च्छित हो उठा। चेतना आने पर बादशाह ने रत्नसेन के नाम सन्देश भेजा कि सिंहलद्वीप की उस पदिमनी को भेजो अन्यथा युद्ध अवश्यम्भावी है। रत्नसेन आग-बबूला हो उठा। दोनों की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध आठ वर्षों तक चला। बादशाह का घेरा चित्तौड़ पर पड़ा रहा। तभी बादशाह ने संधि- प्रस्ताव का संदेश भेजकर छल से काम लिया। राजा ने इस प्रस्ताव को आमोद-प्रमोद के साथ संपन्न किया। बादशाह ने रत्नसेन को शतरंज पर आमंत्रित किया। खेलते समय सामने की दिवार पर एक दर्पण लगा हुआ था, जिसमें पद्मावती का प्रतिबिम्ब देख बादशाह मूर्च्छित हो गया। राघव चेतन तो सब कुछ जानता था, किन्तु रत्नसेन कुछ न समझ सका। विदाई के समय राजा मुख्य द्वार तक छोड़ने आया, वहीं अलाउद्दीन की सशस्त्र सेना द्वारा बन्दी बना लिया गया। अलाउद्दीन बन्दी रत्नसेन को दिल्ली ले आया।

इधर चित्तौड़ में हाहाकार मच गया, रनिवास से उठा और नागमती तथा पद्मावती दोनों ही रानियाँ अपने प्रियतम रत्नसेन के विरह में तड़प उठीं। निराश पद्मावती अंत में गोरा और बादल के द्वार पर आयी। उन दोनों वीर योद्धाओं का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने संकल्प लिया कि जिस छल से बादशाह ने रत्नसेन को कैद कर लिया, उसी छल से वे दोनों भी उसे मुक्त करायेंगे। सोलह सौ पालकियों में सशस्त्र राजपूत सैनिकों को बिठा दिया गया, जिन्हें बत्तीस सहस्त्र घोड़े खींच रहे थे और पद्मावती के चतुर्दोल विमान (पालकी) में एक लोहार पद्मावती की वेशभूषा में बैठा दिया गया। गोरा और बादल के साथ पद्मावती के आगमन का समाचार सुन बादशाह ने उसकी अन्तिम इच्छा का सम्मान करते हुए किले का द्वार खुलवा दिया। चतुर्दोल विमान साथ की सभी पालकियों सहित बिना किसी तलाशी के सुरक्षित बन्दीगृह के द्वार तक पहुँचा दिया गया। पद्मावती वेशधारी लोहार ने बन्दी रत्नसेन की हथकड़ी, बेड़ी और श्रृंखलाओं को काटकर मुक्त कर दिया। सशस्त्र राजा एक घोड़े पर सवार हुआ, जो पहले से तैयार था। गोरा और बादल ने अपनी तलवारें खींच लीं और सभी सशस्त्र राजपूत पालकियों से निकल निकलकर घोड़ों पर जा बैठे। बादल रत्नसेन को लेकर चित्तौड़गढ़ के निकट जा पहुँचा और गोरा बादशाह की सेना को रोकने में संलग्न वीरगति को प्राप्त हुआ। प्रातः काल रत्नसेन ने कुंभलनेर के राजा देवपाल की धृष्टता का बदला लेने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में रत्नसेन को मर्मान्तक घाव लगा किन्तु मरने के पूर्व उसने देवपाल का सिर काटकर हाथ-पैर बांध दिया और चित्तौड़गढ़ की रक्षा का भार बादल के कन्धों पर सौंप अपने प्राण त्याग दिये। सोलहों शृंगारों कर रनिवास की अन्य रानियों के साथ पद्मावती और नागमती प्रिय रत्नसेन के शव के साथ सती हो गयीं।

इधर शाही सेना ने चित्तौड़ का गढ़ घेर लिया। युवक बादल दुर्ग के प्रमुख द्वार पर सेना को रोकता वीरगति को प्राप्त हुआ। बादशाह अलाउद्दीन ने जब पद्मावती के सती हो जाने का वृत्तान्त सुना तो हाथ मलकर रह गया। राजपूत युद्ध में मारे गये और सभी क्षत्राणियों ने जौहर द्वारा सतीत्व की रक्षा की। बादशाह अलाउद्दीन को उपलब्ध हुई मात्र एक मुट्ठी राख, वह जीतकर भी हार चुका था।

इस प्रकार जायसीकृत 'पद्मावत' की इस कथावस्तु का सम्पूर्ण कथानक दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, एक तो पूर्वार्द्ध जिसमें प्रारम्भ से लेकर रत्नसेन के चित्तौड़ पुनरावर्तन तक की कथा का समावेश हुआ है, दूसरा उत्तरार्द्ध जिसमें कुम्भलनेर के राजा देवपाल द्वारा पद्मावती के पास दूती भेजने से लेकर अन्त तक की कथा का समावेश है और जिसका आंशिक आधार इतिहास की घटनाएँ एवं पात्र हैं। 'सुना साहि गढ़ छेंका आई से इस बात का भी संकेत मिल जाता है कवि जिन ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन कर रहा है वह उसने जो सुना उसे आदि अंत जसि कथा अहै' का वर्णन 'लिखि भाषां चौपाई कहै कर रहा है। इसी आख्यान की आधारशिला पर कवि 'हिन्दू संस्कृति की रक्षा करता है, जिसकी ध्वनि हमें नागमती और पद्मावती के सती हो जाने के माध्यम से मिल जाती है। अस्तु 'पद्मावत' की इस कथावस्तु के माध्यम से राजपूतों का शौर्य एवं उत्साह आतिथ्य सत्कार, मानापमान का परित्याग कर दुःखी एवं कातर को शरण देना, अपने वचनों की सम्पूर्ति में प्राणों की बाजी लगा देना, वीर क्षत्राणियों का अनुकरणीय पतिव्रत आदि मूल्यों जिनके साक्ष्य इतिहास के पृष्ठों में भरे पड़े हैं, का सम्यक् उद्घाटन करना ही सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का अभीष्ट था। वस्तुतः लोक एवं इतिहास ग्रन्थों में वर्णित तथ्यों का जो काव्यात्मक स्वरूप हमें 'पद्मावत' में दिखाई पड़ता है, वह सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य के इतिहास में विलक्षण ही है। इसके साथ ही काव्य में कथा का सहज प्रवाह और कथानक की प्रबन्धात्मकता का सफल प्रयास कवि की प्रबन्ध पटुता एवं भाषा पर उसके सशक्त अधिकार का भी परिचायक है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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